Sunday, December 12, 2010

BhiKhariyo Ka Ganw

भिखारियो का गोकुल ग्राम रानाडोंगरी जिनके
रहवासियो के भीख मांगना मजबुरी नही पेशा है.........!
बैतूल भगवान श्रीकृष्ण के यदुवंश में जन्मे ग्वाले जाति के बाबूलाल गौर ने अपने पूर्वज श्रीकृष्ण के गोकुल ग्राम की परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए मध्यप्रदेश में गोकुल ग्रामो की स्थापना का जो बीड़ा उठाया है वह नि:सदेंह तारिफे काबलि है. प्रदेश के हर जिले में बनने वाले इन गोकुल ग्रामो के रहवासियो के लिए हर प्रकार की सुख सुविधाओं का जाल बिछाने में श्री गौर ने कोई कमी नही छोड़ी लेकिन बैतूल जिले के राना डोंगरी गोकुल ग्राम के रहवासी बसदेवा जाति के लोग अपने पुश्तैनी भिक्षावृति के धंधे को छोड़ कर मजदूरी करने को तैयार नही है?  यूं तो भारत में ना- ना प्रकार के विचित्रताओं से गांवो के बारे में किस्े कहानियाँ सुनने को मिलती है. बैतूल जिले का आमला विकासखण्ड का यह गांव पिछले  दस दशक से यहाँ की मूल आबादी बसदेवा जाति की वजह से देश दुनिया में चर्चित खबरो के रूप में जाना पहचाना जाता है. इस गांव के स्वस्थ नौजवान से लेकर बुढ़े लाचार व्यक्ति तक भगवान राम का नाम लेकर भीख मांगते है. यूँ तो आपने कई गांव देखे होंगे और उनसे जुड़े तमाम किस्से कहानियाँ सुनी होंगी, लेकिन इन सब सब से हट कर अपनी विचित्रता के लिए शासन की महत्वाकंाक्षी योजना को कालिख पोतने वाले गांव के बारे में आपने न तो सुना होगा और न ऐसा कारनामा देखा होगा? क्या आपने ऐसा गांव देखा है जहां के लोगों का पेशा भीख मांगना है? जिस गांव की आबादी की भिक्षावृत्ति मजबुरी न होकर पुश्तैनी खानदानी व्यवसाय है ऐसे गांव को मध्य्रपदेश सरकार ने गोकुल ग्राम घोषित करके इस गांव की आबादी को भीख मांगने की लत से छुटकारा दिलवाने का काम किया है लेकिन वे काम धाम करने को तैयार नही है? इस खबर को पढऩे के बाद चौंकिए मत! मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के आमला विकासखण्ड के राना डोंगरी ग्राम में रहने वाली बसदेवा जाति के लोगो ने अपनी भिक्षावृति की आदत के चलते देश दुनियाँ की सैर कर डाली है. इस गांव के लोग अपने पुश्तैनी व्यवसाय के कारण आज इस गांव के लोग लखपति तक बन गए है कई तो अच्छे भले संपन्न किसान और धनवान होने के बाद भी पेशेवर भिखारी की जिदंगी जी रहे है.बैतूल जिले की मुलताई तहसील में बसा यह छोटा सा गांव है 'राना डोंगरीÓ परासिया रेल्वे लाइन पर जंबाड़ा और लालावाड़ी नामक दो रेल्वे स्टेशन के समीप स्थित हैं. इन दोनों स्टेशनों से ठीक पांच किमी पर बसे इस गांव तक पद यात्रा करनी पड़ सकती है. यहाँ पर बसी बसदेवा जाति के  करीब 150 घर हैं. हालाकि इस समुदाय की महिलाए और बच्चे खेती किसानी व पशुपालन का काम करते है. केवल नौजवान और पौढ़ लोग ही भीख मांगने का काम करते हैं. आज भी इन लोगो के घरों में न दूध -दही - घी की कमी है और न रूपए पैसे की! सब कुछ होने के बाद भी दिल है कि भीख मांगे बिना मानता ही नही ! सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इस समुदाय के प्रत्येक घर का मुखिया भिखारी बनता है. इस जाति के लोगो के बीच यह आम धारणा बन गई है कि यह प्रथा उनके पूर्वजों की विरासत है और अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें पूर्वजों का श्राप लगेगा ? और यही आम धारणा इनकी भावी पीढ़ी के हाथ में कटारेा और करताल थमा देती है. बसदेवा समुदाय को कुछ लोग अपने आपको 'भजदेवा के नाम से पुकारते है. इस संबंध में ऐसी मान्यता है कि इस समुदाय के लोग भगवान श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के वंशज है. चूंकि ये लोग भीख मांगते समय हाथ में तंबूरा और करताल लिए भगवान का नाम भजते हैं, इसीलिए इनका नाम 'भजदेवा पड़ गया, जो बाद में  'बसदेवाÓ हो गया. धोती-कुर्ता और सिर पर शालू की पगड़ी पहन कर देश दुनियाँ में भीख मांगते ए लोग बरसात शुरू होते ही अपने गांव को आ जाते है तथा बरसात के चार महिने अपने परिवार के साथ बीताते समय बांस की सुन्दर टोकरीयाँ बनाते है जो रोटी रखने के काम आती है. उक्त बांस की सुन्दर टोकरीयो को भिक्षावृति के दौरान इस चाहने वाले लोगो को बेच देते है. दिपावली के बाद घर से भीख मांगने निकले ए लोग आठ महिने तक अपने घर परिवार से दूर रहते है.
    मजेदार बात यह है कि इस समुदाय में कोई भी पंडित नहीं होता. परिवार का मुखिया ही सब कुछ होता है. मुखिया की गैर हाजिरी में उसकी पत्नी प्रधान होती है. जिस घर में मुखिया अविवाहित होता है, उसकी अनुपस्थिति में उसकी मां प्रधान होती है. मुखिया के भिक्षाटन पर जाने के बाद घर की महिला प्रधान के नेतृत्व में यह समुदाय खेती-बाड़ी और पशुपालन का कार्य करता है. उसकी देखरेख में ही घर परिवार का कामकाज संपन्न होता है. भिखारी बनकर दर-दर भीख मांगने वाले इस समुदाय का मानना है कि मुखिया के साथ परिवार की दरिद्रता घर से बाहर चली जाती है और जब 8 माह बाद वे भीख मांगकर घर लौटते हैं, तो उनके साथ धन-दौलत आती है, जो साक्षात लक्ष्मी होती है, जिसकी वे पूजा करते हैं. अकसर देखने को मिलता है कि ज्यादातर लोग अंग-भंग हो जाने के कारण भीख मांगते है लेकिन बसदेवा समुदाय के साथ ऐसा कुछ नहीं है, फिर भी वे भीख मांगते है.
    कुछ साल पहले तक भिखारियों का यह गांव रानाडोंगरी बहुत पिछड़ा हुआ  था लेकिन जबसे इस गांव को गोकुल ग्राम घोषित किया है तबसे अब इस गांव तक बिजली,सड़क,पानी और स्वास्थ्य सेवाओं के पहँुचने की कवायद लगाई जा रही है.  अभी इस गांव में शिक्षा के नाम पर सिर्फ एक प्राथमिक स्कूल है, जहां गांव के बच्चे पढ़ते हैं .  गांव के मध्य में इस जाति के पूज्य हरदूलाल बाबा का स्थान यहां इस समुदाय की महिलाएं चैत्र माह के प्रत्येक मंगलवार को आटे का दीपक जलाती हैं तथा व्रत रखती है. चैत्र माह के आखिरी मंगलवार को प्रत्येक घर के लोग हाथ में कटोरा लेकर पांच घरों से भीख मांगकर लाए इसी अनाज में सभी अपने घर के अनाज में मिलाकर भोग बनाते है. इस दिन गांव के किसी भी घरों में भोजन नही बनता है. गांव के सभी लोग हरदूलाल बाबा के के पूजा स्थान पर ही अपने लिए भोजन पकाते है पहला भोग बाबा के स्थान पर ही चढ़ाने के बाद ही सभी लोग इसका सेवन करते हैं. इस कार्यक्रम  में गांव में रहने वाली अन्य जाति के लोग भी इनके इस उत्सव में शिरकत करते है. हालाकि इस दिन यहां किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता.
इति,

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